एक दिन की बात है कि लाला हाथ में मक्खन का लोंदा लेकर घुटने के बल चलते हुए अपने घर के आँगन में खेल रहे थे। माता-पिता घरेलू कामकाज में व्यस्त थे। बच्चा आँगन में बैठा हुआ दरवाजे की ओर ताक रहा था। कौए भी काँव-काँव कर रहे थे। इतने में एक विषैला श्वेतनाग कहीं से अचानक टपक पड़ा। कौए उसी की देख-देखकर जोर-जोर से काँव-काँव करने लगे।
माताश्री ने आवाज सुनी। उन्होंने कौए की आवाज से अनुमान लगाया कि कोई मेहमान आने वाला है। बस, इसी उत्सुकता से वे आँगन की ओर झाँकने आयीं तो उन्होने दरवाजे के पास जीभ लपलपाते हुए फण काढ़े विषैले श्वेत नाग को देखा। सर्प को देखते ही माताश्री के होश-हवाश उड़ गये। अपने प्राण को संकट में डालकर लाड़ला को बचाने के लिए वे लपक कर दौंड़ी।
मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। अहो! बड़े ही आश्चर्य की बात है कि भगवान् की अहैतु की कृपा से तत्काल एक नेवला सूँघते-सूँघते वहीं कहीं चूहे के बिल से निकल आया। ज्योंही उसने साँप को देखा, त्योंही उसके रोंगटे खड़े हो गये। साँप को काटने के लिये तत्पर हुआ। नेवला साँप की ओर लपक कर दौड़ा। दोनों की लड़ाई छिड़ गयी। इसी बीच माताश्री ने चुपके से अपने प्यारे लाड़ले बालक को गोद में उठा लिया।
इस तरह होनहार बालक को युगल सरकार भगवान श्रीसीताराम जी ने बचा लिया, क्योंकि प्रभु को उनसे आगे अभी बहुत सेवा लेनी थी। साँप और नेवले की लड़ाई बहुत समय तक चलती रही। दोनों लड़ते-लड़ते थक गये, किन्तु कोई भी एक-दूसरे से हार नहीं मान रहा था। साँप ने भी नेवले को कई बार डस लिया। नेवला कुछ घायल-सा हो गया और कुछ सूँधते हुए मैदान छोड़ गया। इधर साँप को भी नेवले ने नोंच-खरोच दिया था इसलिये वह भी थक चुका था। मौका पाक वह भी इधर-इधर कहीं छिप गया।
सारांस श्रीमहाराजजी की बाललीलाओं का अद्भुद आनन्द लीजिये और सदैव श्री सीताराम, सीताराम, सीताराम कहते हुए सद्गुरूदेव भगवान का प्रातः स्मरण करके अपना जीवन धन्य कीजिये।
जय सियाराम जय हनुमान जय गुरूदेव।
लेखक- अनिल यादव।