ram name

ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णत् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।। 1।।

ऊँ शान्तिः ! शन्तिः !! शान्तिः !!!
आप-दाम पहन्तारं दातारं सर्व-सम्प्रदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्।। 2।।

कल्याणानां निधानं कलिमलमथनं पावनं पावनानाम्।
पाथेयं यन्मुमुक्षोः सपदि पनपदप्राप्तये प्रतिस्थतस्य।।
विश्रामस्थानमेकं कविवरवचसां जीवनं सज्जनानाम्।
वीजं धर्मद्रुमस्य प्रभवतु भवतां भूतये रामनाम्।। 3।।

उद्भव-स्थिति संहार-कारिणीं क्लेश-हारिणीम्।
सर्व-श्रेयस्करीं सीतां नताऽहं राम-वल्लभाम्।। 4।।

ऊँ अर्वाची सुभगे भव सीते वन्दामहे त्वा।
यथा नः सुभगा अससि यथा नः सुफला अससि।। 5।।

मनोऽभिरामं नयनाभिरामं वचोऽभिरामं श्रवणाभिरामम्।
सदाभिरामं सतताभिरामं वन्दे सदा दाशरथिं च रामम्।। 6।।

असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।। 7।।

विचेयानि विचार्याणि विचिन्त्यानि पुनः पुनः।
कृपणस्य धनानीव त्वन्नामानि भवन्तु नः।। 8।।

भक्त भक्ति भगवन्त गरू, चतुर नाम वपु एक।
इनके पद बन्दन किये, नाशैं विध्न अनेक।। 9।।

वह निर्गुणनिराकार ब्रह्म पूर्ण है। यह सगुणसाकार ब्रह्म पूर्ण है। इस सगुण ब्रह्म से जितने कला-अंश अवतार प्रकट होते हैं, सब पूर्ण हैं। अतः इस पूर्ण से निकला हुआ सदा सर्वदा पूर्ण ही रहता है।। 1।।

सर्व विपत्तियों को हरने वाले, समग्र सम्पत्तियों के देने वाले, लोक को सुख देने वाले श्रीरामजी को मैं बारम्बार प्रणाम करता हूँ।। 2।।

जो समस्त कल्याणों का खजाना, कलयुग के पापों का नाशक, पवित्रों को भी पवित्र करने वाला है तथा श्रेष्ठ परमपद की प्राप्ति के लिये चले हुए मुमुक्षुको पाथेय (मार्ग खर्च) है और श्रेष्ठ कवियों की वाणाी का सुखद विश्राम स्थान, सज्जनों का जीवन एवं धर्मरूपी वृक्ष का बीच है, वह श्रीरामनाम आप लोगों को कल्याणरूपी ऐश्वर्य प्रदान करे।। 3।।

उत्पत्ति, पालन संहार करने वाली सर्वशक्ति सम्पन्ना, क्लेश हरण करने वाली, श्रीरामवल्लभा श्री सीताजी को मैं प्रणाम करता हूँ।। 4।।

हे श्री सीताजी! ळम आपकी वन्दना करते हैं। जिस प्रकार हमार परम कल्याण हो वैसी कृपा करने के लिये आप सानुकूल हो जाइये। क्योंकि आप तो अपने भक्तों को परम ऐश्वर्य प्रदान करने वाली हैं तथा आश्रित जनों को सुप्रकाशित करने वाली हैं।। 5।।

मन के लिये आकर्षक, नयनों के लिए रमणीय, उच्चारण के लिए सुमधुर, श्रवण के लिए प्रिय, सदा प्रसन्न एवं सतत आनन्ददायक दशरथनन्दन श्रीराम जी की मैं सदा वन्दना करता हूँ।। 6।।

हे प्रभो! मुझे असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से प्रकार की ओर तथा मृत्यु से अमृतत्व की ओर ले चलें।। 7।।

हे भगवान्! जैसे कृपण मनुष्य बारम्बार धन का संचय, चिार एवं चिन्तन करता है, उसी तरह हमारे लिए आपके “राम“ ही पुनः पुनः सग्रहणीय, विचारणीय एवं चिन्तनीय हों।। 8।।

भक्त, भक्ति, भगवान् और गुरू ये अलग-अलग चार नाम और चार शरीर हैं, वास्तव में इनका महात्म्य एक ही है। इनके श्रीचरणों की वन्दना करने से सम्पूर्ण विघ्नों का पूर्णरूपेण नाश हो जाता है।। 9।।

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