krishna ji

श्रीकृष्ण स्वरूप अधिकमास की स्नान, दान, पुण्य, तप आदि का एवं अधिकमास की बाइसवे अध्याय की कथा एवं महात्म्य-

बाईसवाँ अध्याय- राजा दृढ़धन्वा को पुरूषोत्तम व्रत में भोजन आदि का नियम वर्णन।

राजा दृढधन्वा बोले – हे तपोधन ! पुरुषोत्तम के व्रत में क्या भोजन करना चाहिये और क्या नहीं करना चाहिये तथा व्रत का नियम क्या है यह सब विस्तार से कहिले ? श्री नारायण बोले-राजा दृढधन्वा के पूछने पर मुनि बाल्मीकि लोक हित के लिये सत्कार पूर्वक राजा से बोले – हे राजन् ! पुरुषोत्तम मास में जो नियम कहे हैं, उनको संक्षेप में सुनो । पुरुषोत्तम मास में नियम पूर्वक हविष्यान्न भोजन करे अर्थात गेहूँ, चावल, मिश्री, मूँग, जौ, तिल, मटर, पालक, नींबू, बथुआ, आलू, अरबी, अदरक, ऋतु के शाक, मूल, कन्द, ककड़ी, केला, सेंधा नमक, दही, घी, दूध, माखन, कटहल, आम, हरड़, पीपर, जीरा, सोंठ, इमली, सुपारी, लवली, आँवला, गुड़ नहीं ले गन्ना ले और बिना तेल के पकाये हुये पदार्थ को हविष्यान्न कहते हैं । हविष्यान्न का भोजन मनुष्य को उपवास के समान कहा गया है। सब प्रकार का आमिष (आमलेट अण्डा आदि) मांस, शहद, बेर, राजमा, आदि राई, मादक पदार्थ, दाल, तिल का तेल, लोहे से दूषित, भाव से दूषित, क्रिया से दूषित और शब्द से दूषित अन्न को त्याग दे । पराया अन्न, द्वेष, पर स्त्री गमन, तीर्थ को छोड़कर परदेश न जाय । पुरुषोत्तम मास में देवनिन्दा, वेद, ब्राह्मण, गुरु, गौ, व्रती की निन्दा, स्त्रियों, राजपुरुषों और संतों की निन्दा न करे । सूतिका का अन्न एवं फलों में जँभीरी नीब मांस है, धान्यों में मसूड़ मांस है और बासी अन्न मांस के समान है। बकरी, गौ, और भैंस के दूध के अतिरिक्त अन्य पशुओं का दूध मांस के समान है । ब्राह्मण से खरीदे हुए रस और पृथ्वी से निकला हुआ साँभर नमक मांस के समान है। ताँबे के पात्र में रखा हुआ दूध, चमड़े में रखा हुआ जल, अपने ही लिये पकाया हुआ अन्न विद्वानों ने मांस के समान कहा है । पूर्ण ब्रह्मचर्य से रहे, भूमि पर सोवे, पत्तल पर चौथे पहर में भोजन करें । रजस्वला स्त्री, चांडाल, म्लेच्छ, पतित, संस्कार हीन, विप्र द्रोही, वेद धर्म न जानने वालों से पुरुषोत्तम मास में न बोले । रजस्वला स्त्री और कौआ का देखा हुआ, सूतक का अन्न, दुबारा पकाया हुआ तथा भुँजा हुआ अन्न न खावे । प्याज, लहसुन, मोथा, छत्राक, गाजर, गोभी, मूली, बैंगन पुरुषोत्तम मास में न खावे। इन पदार्थों को सब व्रतों में त्याग दें अपनी शक्ति अनुसार विष्णु की प्रसन्नता के निमित्त कृष्ण चान्द्रायण आदि व्रत भी करे। काशीफल, भटकटैया, लटजीरा, मूली, श्रीफल, इन्द्र जौ, आँवला, नारियल, लौकी, परबल, वेर, चर्मशाक, बैंगन, आजिक शाक, वेल और गंदे जल में उत्पन्न होने वाले शाक को प्रतिपदा से पूर्णिमा तक त्याग दें । गृहस्थी पुरुष सदा रविवार को आँवला त्याग दे । पुरुषोत्तम की प्रसन्नता के लिये जिन-जिन वस्तुओं का त्याग करे वह उन उन वस्तुओं को ब्राह्मण को देकर फिर खावे । हे राजन् ! व्रती पुरुष इन नियमों को कार्तिक और माघ मास में भी करे, क्योंकि नियम के बिना व्रती मनुष्य को कोई फल प्राप्त नहीं होता । शक्ति हो तो निराहार रहकर पुरुषोत्तम का व्रत करे अथवा घी पीकर या दूध पीकर बिना माँगे जो मिल जाय उसी को खाकर व्रत करने वाला शक्ति अनुसार फलाहार करे जिससे व्रत भंग न हो बुद्धिमान पुरुष वही करे । पवित्र दिन प्रातः काल उठकर पूर्वान्ह की क्रिया करके श्रीकृष्ण को हृदय में स्मरण करके भक्ति से नियम ग्रहण करे । हे भूपते ! भक्त उपवास, व्रत, नक्त व्रत और एक भुक्त व्रत इनमें से एक का निश्चय करके व्रत आरम्भ करे । पुरुषोत्तम मास में भक्ति से श्रीमद्भागवत कथा सुने तो इस पुण्य का वर्णन करने में विधाता भी समर्थ नहीं है। पुरुषोत्तम मास में एक लाख तुलसीदल से शालिग्राम का पूजन करने का पुण्य अनन्त होता है। पुरुषोत्तम मास के ऐसे व्रती को देख यम के दूत भाग जाते हैं जैसे सिंह को देख हाथी भाग जाते हैं । हे राजन् ! इस मास का व्रत सौ यज्ञों से भी श्रेष्ठ है क्योंकि यज्ञ करने से स्वर्ग प्राप्त होता है किन्तु पुरुषोत्तम मास का व्रत करने से गोलोक प्राप्त होता है। पृथ्वी के सब तीर्थ और देवता पुरुषोत्तम का व्रत करने वाले के शरीर में रहते हैं । इसका व्रत करने से बुरे स्वप्न, दरिद्रता, तीनों प्रकार के (कायिक, वाचिक, मानसिक) पाप नाश हो जाते हैं। पुरुषोत्तम भगवान की प्रसन्नता के लिये इन्द्र, यम, वरुण आदि देवता पुरुषोत्तम मास के व्रत में तत्पर हरि सेवक की सब विघ्नों से रक्षा करते हैं। पुरुषोत्तम मास का व्रत करने वाला जहाँ रहता है वहाँ भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस आदि नहीं रहते । हे राजन् ! इस प्रकार जो पुरुष पुरुषोत्तम की विधि पूर्वक पूजा करता है उसके फल को साक्षात् शेषनाग भी कहने में समर्थ नहीं हैं । श्रीनारायण बोले- जो पुरुषों में उत्तम पुरुष पुरुषोत्तम भगवान के प्रिय इस व्रत को परम आदर से एकाग्र मन होकर करता है वह पुरुष रसिकेश्वर पुरुषोत्तम के साथ गोलोक में क्रीड़ा करता है। 

जय श्री राधा कृष्णा | पुरषोत्तम भगवान की जय ||

लेखक – अनिल यादव

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