एक समय कार्तवीर्य ने रावण को दिग्विजय के समय पकड़कर अपने कारागार में बंद कर दिया था । तब पुलस्त्य जी ने विनय पूर्वक उसे छुड़ाया था । तब आश्चर्य चकित होकर नारदजी ने अगस्त्यजी से पूछा ऐसे महावली रावण को कार्तवीर्य ने कैसे बंदी बनाया सो कहो । मुनि अगस्त्यजी बोलें- नारदजी ! त्रेतायुग में हैहय कुल में कृतवीर्य नाम का राजा माहिष्मती नगर में राज्य करता था। उसके एक हजार रानियाँ थीं परन्तु उनमें किसी के भी पुत्र नहीं हुआ तब चिंतित होकर राजा तप करने वन में चला गया उसके साथ उसकी रानी प्रमदा भी चली गई। दोनों ने दस हजार वर्ष तक तपस्या की शरीर जर्जर हो गया तब रानी प्रमदा ने अनुसुइया से अपने दुःख का कारण कहा। अनुसुइया बोली- हे रानी ! तुम अधिमास में आने वाली पद्मिनी और परमा इन दोनों एकादशियों का नियम पूर्वक व्रत करो इनके करने से तुम्हारे अवश्य पुत्र होगा । रानी प्रमदा ने विधि पूर्वक व्रत किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने वर माँगने को कहा । रानी ने कहा वर मेरे पति को दें तब भगवान ने राजा से कहा-हे कृतवर्मा ! मैं तेरी रानी के अधिकमास की एकादशी के व्रत से बहुत प्रसन्न हुआ हूँ अतः तू वर माँग । राजा ने कहा- आपको छोड़कर देव, दानव, नाग, दैत्य, राक्षस आदि से अजेय पुत्र दें । भगवान “तथास्तु” कहकर अंतर्ध्यान हो गये । राजा रानी अपने नगर को आ गये उन्हीं के पद्मा एकादशी के प्रभाव से कार्तवीर्य पुत्र उत्पन्न हुआ जिसने रावण को बंदी बनाया था।
जय सियाराम जय हनुमान जय गुरूदेव।
लेखक अनिल यादव।