अधिमास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम परमा एकादशी है। इस दिन भगवान पुरुषोत्तम की धूप, दीप, नैवेद्य पुष्प आदि से पूजा करे। इससे अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
काम्पिल्य नगरी में एक सुदामा नाम का ब्राह्मण रहता था उसकी स्त्री पवित्रा बड़ी पतिव्रता थी। लेकिन ब्राह्मण अपने पूर्व जन्म के किसी कारण से बड़ा दरिद्री था। वे दोनों भिक्षा से ही वमुश्किल अपना जीवन निर्वाह करते थे। ऐसी दशा में भी उसकी स्त्री अपना पतिव्रत धर्म निभाते हुए आये हुए अतिथि का अन्न से सत्कार करती थी चाहे आप भूखी रह जाती थी और अपने पति से कुछ नहीं कहती थी। एक दिन पत्नी की दुर्बलता को देखकर उसने कहा- प्रिये! बिना धन के जीवन निर्वाह कैसे होगा यदि कहो तो मैं परदेश जाकर कुछ उद्यम करके धन कमा लाऊँ पवित्रा बोली- स्वामी ! पति की आज्ञा पालन करना ही पत्नी का कर्त्तव्य है। आपकी आज्ञा से मैं कहती हूँ कि शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य पूर्व जन्म में दान आदि करता है वही दूसरे जन्म में पृथ्वी पर प्राप्त करता है। बिना पूर्व संस्कारों के कुछ नहीं मिलता। मेरी समझ में आप यहीं रहकर उद्यम करें मुझसे आपका वियोग भी न सहा जावेगा क्योंकि बिना पति के माता, पिता, भाई, सास, श्वसुर आदि कुटुम्बीजन व रिश्तेदार स्त्री को कुदृष्टि से देखते हैं अतः आप यहीं रहें। भाग्य से सब कुछ मिलेगा पत्नि की बात सुनकर वह वहीं रहने लगा। एक दिन उनके घर कौंडिन्य मुनि आये दोनों ने उनका सत्कार करके भोजन आदि कराकर अपना सब दुःख सुनाकर कहा- हे मुनि! हमें कोई ऐसा सरल उपाय बताइये जिससे हमारी दरिद्रता दूर हो। मुनि ने कहा- हे पवित्रे! तुम दोनों अधिमास की कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी का व्रत करो जिससे तुम्हारे सब दुःख, दारिद्रय, रोग, पराजय व पाप नष्ट हो जावेंगे। इसी के प्रभाव से शिवजी ने कुबेर को धनपति बना दिया, राजा हरिश्चन्द्र को पुत्र, पत्नि और राज्य पुनः प्राप्त हुआ अतः सब विधि बताकर कहा – इसी दिन से पंच रात्रि व्रत भी प्रारम्भ होता है जो बहुत उत्तम है इसी एकादशी से शुरू कर जो पाँच दिन तक निर्जल रहता है वह सकुटुम्ब स्वर्ग को जाता है। जो संध्या के समय एक बार भोजन करते हैं और पाँच दिन स्नान करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं उन्हें संसार को भोजन कराने का फल मिलता है और जल कुम्भ दान करने से ब्रह्माण्ड के दान का फल प्राप्त होता है, तिल पात्र दान करने से तिलों की संख्या के बराबर और घृत पात्र दान करने से स्वर्ग सुख भोगता है। ऐसा करने से तुम दोनों समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर अन्त में स्वर्ग को प्राप्त होगे। मुनि के बताये अनुसार वे दोनों विधि पूर्वक व्रत करके सब सुख भोगकर अन्त में स्वर्ग को गये।
जय सियाराम जय हनुमान जय गुरूदेव।
लेखक अनिल यादव।